समान नागरिक संहिता

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समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता(Common Civil Code) तथा समान आचार संहिता(Common Code Of Conduct)बिल्कुल भिन्न विषय है। दोनों का अंतर न समझने के कारण से भ्रम होता है। 
नागरिक संहिता नागरिक के लिए होती है, राजनैतिक व्यवस्था से जुड़ी होती है, सामूहिक होती है जबकि अचार संहिता व्यक्ति की होती है, व्यक्तिगत होती है, समाज तथा राज्य के दबाव से मुक्त होती है।
नागरिक संहिता प्रत्येक नागरिक के लिए समान होती है तथा आचार संहिता समान होना संभव नहीं है।
व्यक्ति का व्यक्तिगत आचरण तब तक आचार संहिता है जब तक वह किसी अन्य व्यक्ति को किसी भी रूप में प्रभावित न करे। यदि किसी व्यक्ति का कोई आचरण किसी अन्य व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना प्रभावित करता है तब नागरिक संहिता लागू होती है। नागरिक व्यवहार ही नागरिक का सामाजिक व्यवहार होता है। इस संबंध में समाज के प्रतिनिधि के रूप में राज्य हस्तक्षेप भी कर सकता है और नियम भी बना सकता है। धर्म, जाति, भाषा, व्यवसाय, लिंग आदि के आधार पर किए गए कार्य तब तक व्यक्तिगत आचरण है जब तक वे किसी अन्य के वैसे ही आचरण में कोई हस्तक्षेप न करे। शासन या समाज को व्यक्ति के ऐसे मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
*समान नागरिक संहिता*
समाज में टकराव तथा वर्ग विद्वेष दूर करने हेतु समान नागरिक संहिता आवश्यक है। समान नागरिक संहिता तत्काल लागू कर देने से महिलाओं, आदिवासियों, हरिजनों, दिव्यांगों, गरीबों तथा वृद्धों पर बुरा असर पड़ सकता है। इस प्रभाव को ठीक करने के लिए निम्न कार्य किए जा सकते हैं-
(१)महिलाओं को परिवार की संम्पत्ति में समान अधिकार देना।
(२)आदिवासियों, हरिजनों को श्रम मूल्य वृद्धि द्वारा।
(३)दिव्यांगों तथा वृद्धों को शासन के पास बची राशि सभी नागरिकों में समान रूप से बाँटकर तथा ऐसे असहाय जो अकेले हों ऐसे लोगों के संपूर्ण भरण पोषण का दायित्व लेकर।

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